Class 12 NCERT Solutions Hindi Vitan Chapter 2 Jujha by Anand Yadav
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Class 12 NCERT Solutions Hindi Vitan
Chapter 2 Jujha by Anand Yadav
वितान - 2. जूझ - आनंद यादव
1. ‘जूझ’ शीर्षक के औचित्य पर विचार करते हुए यह स्पष्ट करें कि क्या यह शीर्षक कथा नायक की किसी केद्रीय चारित्रिक विशेषता को उजागर करता है?
2. स्वयं कविता रच लेने का आत्मविश्वास लेखक के मन में कैसे पैदा हुआ?
Answer-
3. श्री सौंदलगेकर के अध्यापन की उन विशेषताओं को रेखांकित करें जिन्होंने कविताओं के प्रति लेखक के मन में रूचि जगाई।
Answer- श्री सौंदलगेकर के अध्यापन की विशेषताओं को रेखांकित करने के लिए निम्नलिखित प्रमुख पहलुओं को ध्यान में रखा जा सकता है, जिन्होंने कविताओं के प्रति लेखक के मन में रूचि जगाई:
विद्वत्ता: श्री सौंदलगेकर एक विद्वान और अनुभवी कवि थे, जिनकी गहरी ज्ञान और समझ कविताओं के माध्यम से छाई रहती थी। उनकी विद्वत्ता ने लेखक के मन में कविताओं के प्रति गहरी रूचि जगाई।
साहित्यकारिता का गहरा ज्ञान: श्री सौंदलगेकर के अध्यापन से, लेखक को साहित्यकारिता के गहरे ज्ञान की प्राप्ति हुई, जिसने उन्हें कविताओं के प्रति अधिक गहरी समझ प्रदान की।
विवेचना और विश्लेषण: सौंदलगेकर जी के अध्यापन में, विवेचना और विश्लेषण का महत्वपूर्ण स्थान था। उनके अध्यापन से, लेखक ने कविताओं के रूप, रचनात्मकता, और संदेश को समझना और महसूस करना सीखा।
प्रेरणादायक स्थितियों का उत्कृष्ट उपयोग: श्री सौंदलगेकर के अध्यापन में, लेखक ने कविताओं के प्रेरणादायक संदर्भों और जीवन की अनुभूतियों का उत्कृष्ट उपयोग देखा, जो उन्हें कविताओं के प्रति अधिक सम्मोहित किया।
संवाद और संगठन: सौंदलगेकर जी के अध्यापन से, लेखक को कविताओं के संवाद और संरचना के महत्व की पूरी जानकारी मिली, जो उन्हें कविताओं के प्रति अधिक समझाने में मदद की।
इस प्रकार, श्री सौंदलगेकर के अध्यापन की विशेषताएँ ने लेखक के मन में कविताओं के प्रति उत्साह और रुचि को बढ़ाया।
4. कविता के प्रति लगाव से पहले और उसके बाद अकेलेपन के प्रति लेखक की धारणा में क्या बदलाव आया?
Answer- 'जूझ' में, कविता के प्रति लगाव से पहले और उसके बाद, अकेलेपन के प्रति लेखक की धारणा में कुछ बदलाव आ सकते हैं:
प्रतिस्पर्धा का अभाव; कविता के प्रति लगाव से पहले, लेखक का ध्यान अकेलेपन की धारणा की ओर नहीं था। वे शायद कविता को उनकी पहचान या सामाजिक मान्यताओं का एक हिस्सा मानते थे। लेकिन कविता के प्रति लगाव के बाद, अकेलेपन का महत्व समझने में उन्हें संवेदनशीलता और व्यक्तिगतता के प्रति अधिक ध्यान देने की प्रेरणा मिली।
आत्म-समझ: कविता के प्रति लगाव से पहले, लेखक की आत्म-समझ कम हो सकती है, और उन्हें अपने आत्म-समझ की आवश्यकता का एहसास नहीं होता। लेकिन कविता के प्रति लगाव के बाद, उन्हें अपने अंतरंग मन के साथ अधिक संज्ञानात्मक संबंध बनाने का अवसर मिलता है, जो उन्हें अकेलेपन के प्रति अधिक संवेदनशील बनाता है।
अधिक संवेदनशीलता: कविता के प्रति लगाव के बाद, लेखक को अधिक संवेदनशीलता का अनुभव हो सकता है। यह संवेदनशीलता उन्हें अकेलेपन के प्रति अधिक समझने और स्वीकार करने की क्षमता प्रदान कर सकती है।
इन बदलावों के परिणामस्वरूप, लेखक का अकेलेपन के प्रति दृष्टिकोण और समझ में वृद्धि हो सकती है, जिससे उन्हें अपने कविताओं को और भी मजबूती से और व्यक्तिगत रूप से लिखने में मदद मिल सकती है।
5. आपके खयाल से पढ़ाई-लिखाई के संबंध में लेखक और दत्ता जी राव का रवैया सही था या लेखक के पिता का? तर्क सहित उत्तर दें।
Answer-'जूझ' जैसी कहानी में लेखक आनंद यादव के पिता दत्ता जी राव और लेखक दोनों के संबंध शिक्षा और पढ़ाई के संबंध में विभिन्न रवैये प्रस्तुत किए गए हैं।
दत्ता जी राव का रवैया: दत्ता जी राव का रवैया शिक्षा को पाठशाला और विश्वविद्यालय की सीमा में समायोजित करने की दिशा में था। उनका दृष्टिकोण शिक्षा को पुस्तकों और प्रोफेसरों के माध्यम से प्राप्त करने की ओर था।
लेखक के पिता का रवैया: लेखक के पिता का रवैया शिक्षा को जीवन के हर पहलू से सम्बोधित करने की दिशा में था। उनका मानना था कि शिक्षा सिर्फ पुस्तकों से ही नहीं, बल्कि जीवन के अनुभवों से भी प्राप्त की जा सकती है।
इस संदर्भ में, दोनों रवैयों में अपने स्थान का यथार्थता है। शिक्षा को विभिन्न विभागों से प्राप्त किया जा सकता है, और दोनों रवैयों के अपने-अपने महत्व हैं।
हालांकि, 'जूझ' में लेखक आनंद यादव की कहानी के माध्यम से लगता है कि उन्होंने अपने पिता के रवैये को अधिक महत्वपूर्ण माना, जिसने उन्हें जीवन के अनुभवों के माध्यम से शिक्षा का महत्व समझाया। लेखक के पिता के रवैये ने उन्हें वास्तविकता के साथ जुड़े शिक्षा के अनुभवों को समझने की क्षमता प्रदान की, जो कि उनके लेखन में गहराई और समर्थ बनाई।
इसलिए, लेखक आनंद यादव के रवैये का महत्व जीवन के अनुभवों की शिक्षा में उनकी अद्वितीयता और संबल के आधार पर था।
6. दत्ता जी राव से पिता पर दबाव डलवाने के लिए लेखक और उसकी माँ को एक झूठ का सहारा लेना पड़ा। यदि झूठ का सहारा न लेना पड़ता तो आगे का धटनाक्रम क्या होता? अनुमान लगाएँ।
Answer-अगर लेखक और उसकी माँ को झूठ का सहारा नहीं लेना पड़ता, तो दत्ता जी राव पर पिता के दबाव को डालने का दृश्य बन सकता है। यदि यह सच होता, तो लेखक और उसकी माँ को दत्ता जी राव की प्रतिक्रिया से निपटना पड़ सकता है।
अगर झूठ का सहारा न लेने पर आगे का धटनाक्रम कोई और मोड़ लेता, तो लेखक और उनकी माँ को अधिक मुश्किल स्थिति का सामना करना पड़ सकता है। दत्ता जी राव के दबाव के कारण, वे अपनी स्थिति को लेकर अधिक तनाव और चिंता में आ सकते हैं। इसके अलावा, झूठ का सहारा लेने की बजाय सच्चाई का सामना करना लेखक और उनकी माँ के लिए और भी अधिक उत्तेजना का कारण बन सकता है।
इस रूप में, झूठ का सहारा न लेने की स्थिति में, संभावित धटनाक्रम अधिक तनावपूर्ण और परेशानीपूर्ण हो सकता है, जिससे लेखक और उनकी माँ को अधिक मुश्किलात का सामना करना पड़ सकता है।
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